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Chapter 10: संविधान का राजनीतिक दर्शन
NCERT solutions for Political Science Class 11 [राजनीति विज्ञान - भारत का संविधान सिद्धांत और व्यवहार ११ वीं कक्षा] Chapter 10 संविधान का राजनीतिक दर्शन प्रश्नावली [Pages 238 - 241]
नीचे कुछ कानून दिए गए हैं। क्या इनका संबंध किसी मूल्य से है? यदि हाँ, तो वह अन्तर्निहित मूल्य क्या है? कारण बताएँ।
- पुत्र और पुत्री दोनों का परिवार की संपत्ति में हिस्सा होगा।
- अलग-अलग उपभोक्ता वस्तुओं के ब्रिकी-कर का सीमांकन अलग-अलग होगा।
- किसी भी सरकारी विद्यालय में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।
- ‘बेगार’ अथवा बँधुआ मजदूरी नहीं कराई जा सकती।
नीचे कुछ विकल्प दिए जा रहे हैं। बताएँ कि इसमें किसका इस्तेमाल निम्नलिखित कथन को पूरा करने में नहीं किया जा सकता?
लोकतांत्रिक देश को संविधान की जरूरत ______।
सरकार की शक्तियों पर अंकुश रखने के लिए होती है।
अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से सुरक्षा देने के लिए होती है।
औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता अर्जित करने के लिए होती है।
यह सुनिश्चित करने के लिए होती है कि क्षणिक आवेग में दूरगामी लक्ष्यों में कहीं विचलित न हो जाएँ।
शांतिपूर्ण ढंग से सामाजिक बदलाव लाने के लिए होती है।
संविधान सभा की बहसों को पढ़ने और समझने के बारे में नीचे कुछ कथन दिए गए हैं-
- इनमें से कौन-सा कथन इस बात की दलील है कि संविधान सभा की बहसें आज भी प्रासंगिक हैं? कौन-सा कथन यह तर्क प्रस्तुत करता है कि ये बहसें प्रासंगिक नहीं है?
- इनमें से किस पक्ष का आप समर्थन करेंगे और क्यों?
- आम जनता अपनी जीविका कमाने और जीवन की विभिन्न परेशानियों के निपटारे में व्यस्त होती है। आम जनता इन बहसों की कानूनी भाषा को नहीं समझ सकती।
- आज की स्थितियाँ और चुनौतियाँ संविधान बनाने के वक्त की चुनौतियों और स्थितियों से अलग हैं। संविधान निर्माताओं के विचारों को पढ़ना और अपने नए जमाने में इस्तेमाल करना दरअसल अतीत को वर्तमान में खींच लाना है।
- संसार और मौजूदा चुनौतियों को समझने की हमारी दृष्टि पूर्णतया नहीं बदली है।
संविधान सभा की बहसों से हमें यह समझने के तर्क मिल सकते हैं कि कुछ संवैधानिक व्यवहार क्यों महत्त्वपूर्ण हैं। एक ऐसे समय में जब संवैधानिक व्यवहारों को चुनौती दी जा रही है, इन तर्को को न जानना संवैधानिक-व्यवहारों में सभा में हुई। वार्ता की आज भी उपयोगिता है।
निम्नलिखित प्रसंगों के आलोक में भारतीय संविधान और पश्चिमी अवधारणा में अन्तर स्पष्ट करें-
- धर्मनिरपेक्षता की समझ
- अनुच्छेद 370 और 371
- सकारात्मक कार्य-योजना या अफरमेटिव एक्शन
- सार्वभौम वयस्क मताधिकार।
निम्नलिखित में धर्मनिरपेक्षता का कौन-सा सिद्धान्त भारत के संविधान में अपनाया गया है।
राज्य का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।
राज्य का धर्म से नजदीकी रिश्ता है।
राज्य धर्मों के बीच भेदभाव कर सकता है।
राज्य धार्मिक समूहों के अधिकार को मान्यता देगा।
राज्य को धर्म के मामलों में हस्तक्षेप करने की सीमित शक्ति होगी।
निम्नलिखित कथनों को सुमेलित करें-
(क) | विधवाओं के साथ किए जाने वाले बरताव की आलोचना की आजादी | आधारभूत महत्त्व की उपलब्धि |
(ख) | संविधान-सभा में फैसलों का स्वार्थ के आधार पर नहीं बल्कि तर्कबुद्धि के आधार पर लिया जाना। | प्रक्रियागत उपलब्धि |
(ग) | व्यक्ति के जीवन में समुदाय के महत्त्व को स्वीकार करना। | लैंगिक-न्याय की उपेक्षा |
(घ) | अनुच्छेद 371 | उदारवादी व्यक्तिवाद |
(ङ) | महिलाओं और बच्चों को परिवार की संपत्ति में असमान अधिकार। | धर्म-विशेष की जरूरतों के प्रति ध्यान देना। |
यह चर्चा एक कक्षा में चल रही थी। विभिन्न तर्को को पढे और बताएँ कि आप इनमें से किससे सहमत हैं और क्यों?
जएश – मैं अब भी मानता हूँ कि हमारा संविधान एक उधार का दस्तावेज है।
सबा – क्या तुम यह कहना चाहते हो कि इसमें भारतीय कहने जैसा कुछ है ही नहीं? क्या
मूल्यों और विचारों पर हम ‘भारतीय’ अथवा ‘पश्चिमी’ जैसा लेबल चिपको सकते हैं? महिलाओं और पुरुषों की समानता का ही मामला लो। इसमें पश्चिमी’ कहने जैसी क्या है? और, अगर ऐसा है भी तो क्या हम इसे महज पश्चिमी होने के कारण खारिज कर दें?
जएश – मेरे कहने का मतलब यह है कि अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ने के बाद क्या हमने उनकी संसदीय शासन की व्यवस्था नहीं अपनाई?
नेहा – तुम यह भूल जाते हो कि जब हम अंग्रेजों से लड़ रहे थे तो हम सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ थे। अब इस बात का, शासन की जो व्यवस्था हम चाहते हैं उसको अपनाने में कोई लेना-देना नहीं, चाहे यह जहाँ से भी आई हो।
ऐसा क्यों कहा जाता है कि भारतीय संविधान को बनाने की प्रक्रिया प्रतिनिधिमूलक नहीं थी? क्या इस कारण हमारा संविधान प्रतिनिध्यात्मक नहीं रह जाता? अपने उत्तर के कारण बताएँ।
भारतीय संविधान की एक सीमा यह है कि इसमें लैंगिक - न्याय पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। आप इस आरोप की पुष्टि में कौन-से प्रमाण देंगे? यदि आज आप संविधान लिख रहे होते, तो इस कमी को दूर करने के लिए उपाय के रूप में किन प्रावधानों की सिफारिश करते?
क्या आप इस कथन से सहमत हैं कि-एक गरीब और विकासशील देश में कुछ एक बुनियादी सामाजिक-आर्थिक अधिकार मौलिक अधिकारों की केंद्रीय विशेषता के रूप में दर्ज करने के बजाय राज्य की नीति-निदेशक तत्त्वों वाले खण्ड में क्यों रख दिए गए- यह स्पष्ट नहीं है। आपके जानते सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को नीति-निदेशक तत्त्व वाले खण्ड में रखने के क्या कारण रहे होंगे?
Chapter 10: संविधान का राजनीतिक दर्शन
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NCERT solutions for Political Science Class 11 [राजनीति विज्ञान - भारत का संविधान सिद्धांत और व्यवहार ११ वीं कक्षा] chapter 10 - संविधान का राजनीतिक दर्शन
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