प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया? - History (इतिहास)

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Long Answer

प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया?

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Solution

18वीं शताब्दी में राजनैतिक एवं व्यापारिक पुनर्गठन के परिणामस्वरूप पुराने नगरों का पतन होने लगा और नए-नए नगर विकसित होने लगे। मुग़ल सत्ता के पतनोन्मुख हो जाने के कारण उसके शासन से संबद्ध नगर भी पतन को प्राप्त होने लगे। भारत में राजनैतिक नियंत्रण की प्राप्ति के साथ-साथ कंपनी के व्यापार में वृद्धि होने लगी और मद्रास, कलकत्ता एवं बंबई जैसे औपनिवेशिक बंदरगाह नगर तीव्र गति से नवीन आर्थिक राजधानियों के रूप में विकसित होने लगे। शीघ्र ही ये नगर औपनिवेशिक सत्ता एवं प्रशासन के महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गए। इन औपनिवेशिक शहरों के प्रति भारतीयों विशेष रूप से भारतीय व्यापारियों का आकर्षण बढ़ने लगा और वे स्वयं को इन शहरों में स्थापित करने लगे।

  1. यूरोपीयों से लेन-देन करने वाले भारतीय व्यापारी, कारीगर एवं कामगार औपनिवेशिक शहरों में बसने लगे। वे किलेबंद क्षेत्र | से बाहर स्थापित अपनी पृथक् बस्तियों में रहते थे।
  2. भारत में राजनैतिक सत्ता एवं संरक्षण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में आ जाने पर दुभाषिए, बिचौलिए, व्यापारी तथा माल की आपूर्ति करने वाले भारतीय भी इन शहरों के महत्त्वपूर्ण अंग बन गए।
  3. 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में रेलवे नेटवर्क का तीव्र गति से विस्तार होने के कारण औपनिवेशिक नगर शेष भारत से जुड़ गए और कच्चे माल एवं श्रम के स्रोत देहाती एवं दूरवर्ती क्षेत्र भी इन बंदरगाह शहरों से जुड़ने लगे। अतः भारतीय व्यापारी इन नगरों में अपने उद्योग स्थापित करने लगे। उदाहरण के लिए 1850 के दशक के बाद भारतीय व्यापारियों एवं उद्यमियों द्वारा बंबई में सूती कपड़ा मिलों की स्थापना की गई।
  4. धनी भारतीय एजेंटों एवं बिचौलियों ने बाजारों के आस-पास ब्लैक टाउन में परंपरागत शैली के आधार पर दालानी मकानों | का निर्माण करवाया।
  5. उन्होंने भविष्य में पैसा लगाने और अधिकांश लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से शहर के अंदर बड़ी-बड़ी जमीनों को भी खरीद लिया।
  6. शीघ्र ही वे पाश्चात्य जीवन-शैली का अनुकरण करने लगे। अपने अंग्रेज़ स्वामियों को प्रभावित करने के उद्देश्य से उन्होंने त्योहारों के अवसरों पर रंगीन दावतों का आयोजन करना प्रारंभ कर दिया।
  7. समाज में अपनी हैसियत दिखाने के लिए वे मंदिरों का भी निर्माण करवाने लगे। नए-नए व्यवसायों के विकसित होने के कारण शहरों में क्लर्को, शिक्षकों, वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और अकाउंटेंट्स आदि की माँग में निरन्तर वृद्धि होने लगी। ‘मध्यवर्ग’ का विस्तार होने लगा और औपनिवेशिक शहरों में शिक्षित भारतीयों का महत्त्व बढ़ने लगा।
Concept: पूर्व-औपनिवेशिक काल में कस्बे और शहर
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Chapter 12: औपनिवेशिक शहर - अभ्यास [Page 344]
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