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Answer in Brief
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें -
1977 के चुनावों के दौरान भारतीय लोकतंत्र, दो - दलीय व्यवस्था के जितना नज़दीक आ गया था उतना पहले कभी नहीं आया। बहरहाल अगले कुछ सालों में मामला पूरी तरह बदल गया। हारने के तुरंत बाद कांग्रेस दो टुकड़ों में बँट गई ..... जनता पार्टी में भी अफरा तफरी मची .... डेविड बँटलर, अशोक लाहिडी और प्रणव रॉय
- पार्था चटर्जी
- किन वजहों से 1977 में भारत की राजनीती दो - दलीय प्रणाली के समान जान पड रही थी?
- 1977 में दो से ज़्यादा पार्टियाँ अस्तित्व में थी। इसके बावजूद लेखकगण इस दौर को दो - दलीय प्रणाली के नज़दीक क्यों बता रहे हैं?
- कांग्रेस और जनता पार्टी में किन कारणों से टूट पैदा हुई?
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Solution
- 1977 में भारत की राजनीती दो दलीय प्रणाली इसलिए जान पड़ रही थी क्योंकि सभी कांग्रेस के विरोध दल जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति या जनता पार्टी में शामिल हो गए और दूसरी और कांग्रेस उनकी विरोधी थी।
- लेखकगण इस दौर को दो दलीय प्रणाली के नजदीक इसलिए बता रहे हैं क्योंकि कांग्रेस कई टुकड़ों में बँट गई और जनता पार्टी में भी फुट हो गई परन्तु फिर भी इन दोनों प्रमुख पार्टियों के नेता संयुक्त नेतृत्व और साझे कार्यक्रम तथा नीतियों की बात करने लगे। इन दोनों गुटों की नीतियाँ एक जैसी थीं। दोनों में बहुत कम अंतर था। वांमपंथी मोर्चे में सी. पी. एम., सी. पी. आई. फॉरवर्ड ब्लॉक, रिपब्लिकन पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों को हम इसने अलग मान सकते हैं।
- 1977 में आपातकाल की समाप्ति की घोषणा के बाद कांग्रेस में विभाजन हुआ। कांग्रेस में बहुत से नेता आपातकाल की घोषणा के समर्थक नहीं थे। वे आपातकाल में हुई ज्यादतियों के विरुद्ध थे। परन्तु आपातकाल में विरोध प्रकट नहीं कर सकते थे। 1977 में ऐसे नेता बाबू जनजीवन राम जो दलित नेता समझे जाते थे और सदैव ही कांग्रेस मंत्रिमंडल में रहे थे, के नेतृत्व में कांग्रेस से अलग हो गए और उन्होंने अपना कांग्रेस फार डेमोक्रेसी नामक दल बनाया। फिर वे जनता पार्टी में शामिल हो गए।
Concept: आपातकाल के बाद की राजनीति
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