ईश्वर भक्ति तथा प्रेम के आधार पर साखी के प्रथम छह पदों का रसास्वादन कीजिए।
Solution
कवि कहते हैं कि ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति के मन के भीतर है, उसे पूजने के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं है। दादू दयाल माया-मोह को त्यागने और प्रभु राम की भक्ति करने का आवाहन करते हैं। उन्होंने माया-मोह में लिप्त लोगों के दिल को पत्थर के समान तथा राम की भक्ति में लीन लोगों के दिल को मक्खन के समान कोमल कहा है। वे सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति के समर्थक हैं। वे ईश्वर की भक्ति के लिए साधक को अपना अहंकार त्यागना आवश्यक मानते हैं। दादू दयाल की भक्ति ईश्वर में लीन होकर अपना अस्तित्व मिटा देने वाली भक्ति है। वे ईश्वर के गुण गाते और मस्त होकर नाचते हुए ईश्वर को अपने समक्ष प्रत्याशी खड़े हुए पाते हैं। दादू दयाल की ईश्वर भक्ति में अटूट श्रद्धा है। वे ईश्वरभक्ति को भवसागर पार करने का एकमात्र साधन मानते हैं। प्रेम के बारे में दादू दयाल का कहना है कि प्रेम को समझना बहुत मुश्किल है। कोई-कोई ही इसे समझ पाता है। वेद-पुराण आदि ग्रंथों को पढ़कर उसे नहीं समझा जा सकता। वेदों और पुराणों में ज्ञान का विपुल भंडार भरा पड़ा है, पर दादू जैसा ज्ञानी तो उसमें से एक ही अक्षर पढ़ता है। वह अक्षर है 'प्रेम'। दादू दयाल ने ईश्वर भक्ति और प्रेम की इन बातों को बहुत सीधे-सादे ढंग से अपनी सधुक्कडी भाषा में अत्यंत सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। उन्होंने ईश्वर भक्ति और प्रेम संबंधी अपने विचारों को साखियों अर्थात दोहा-छंद में ज्ञानोपदेश के रूप में प्रस्तुत किया है। दादू दयाल ने सीधे-सादे ढंग से अपनी सधुक्कड़ी भाषा में अपने विचारों को अत्यंत सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। अपनी बातें कहने के लिए उन्होंने साखी अर्थात दोहा छंद का प्रयोग किया है। जिसके माध्यम से उन्होंने गूढ़ बातें भी गिने-चुने शब्दों में कह दी हैं।