बँटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहे?
Solution
विभाजन के सर्वाधिक दूषित प्रभाव संभवतः महिलाओं पर हुए। विभाजन के दौरान उन्हें दर्दनाक अनुभवों से गुजरना पड़ा। उन्हें बलात्कार की निर्मम पीड़ा को सहन करना पड़ा। उन्हें अगवा किया गया, बार-बार बेचा और खरीदा गया तथा अंजान हालात में अजनबियों के साथ एक नई ज़िदगी जीने के लिए विवश किया गया। महिलाएँ मूक, निरीह प्राणियों के समान इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरती रहीं। गहरे सदमे से गुजरने के बावजूद कुछ महिलाएँ बदले हुए हालात में नए पारिवारिक बंधनों में बँध गईं। किन्तु भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने ऐसे मानवीय संबंधों की जटिलता के विषय में किसी संवेदनशील दृष्टिकोण को नहीं अपनाया। यह मानते हुए कि इस प्रकार की अनेक महिलाओं को बलपूर्वक घर बैठा लिया गया था, उन्हें उनके नए परिवारों से छीनकर पुराने परिवारों के पास अथवा पुराने स्थानों पर भेज दिया गया। इस संबंध में सम्बद्ध महिलाओं की इच्छा जानने का प्रयास ही नहीं किया गया।
इस प्रकार, विभाजन की मार झेल वाली उन महिलाओं को अपनी जिदगी के विषय में फैसला लेने के अधिकार से एक बार फिर वंचित कर दिया गया। एक अनुमान के अनुसार महिलाओं की बरामदगी’ के अभियान में कुल मिलाकर लगभग 30,000 महिलाओं को बरामद किया गया। इनमें से 8,000 हिन्दू व सिक्ख महिलाओं को पाकिस्तान से और 22,000 मुस्लिम महिलाओं को भारत से निकाला गया। बरामदगी की यह प्रक्रिया 1954 ई० तक चलती रही। उल्लेखनीय है कि विभाजन की प्रक्रिया के दौरान अनेक ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं, जब परिवार के पुरुषों ने इस भय से कि शत्रु द्वारा उनकी औरतों -माँ, बहन, बीवी, बेटी को नापाक किया जा सकता था, परिवार की इज्ज़त अर्थात मान-मर्यादा की रक्षा के लिए स्वयं ही उनको मार डाला। उर्वशी बुटालिया की पुस्तक ‘दि अदर साइड ऑफ साइलेंस’ में रावलपिंडी जिले के थुआ खालसा गाँव की एक ऐसी ही दिल दहला देने वाली घटना का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि विभाजन के समय सिक्खों के इस गाँव की 90 महिलाओं ने ‘शत्रुओं के हाथों पड़ने की अपेक्षा स्वेच्छापूर्वक कुएँ में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे। इस प्रकार विभाजन के दौरान महिलाओं को अनेक दर्दनाक अनुभवों से गुजरना पड़ा।