आशय लिखिए : ‘‘युग बंदिनी हवाएँ... टूट रहीं प्रतिमाएँ।’’ - Hindi

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Short Note

आशय लिखिए :

‘‘युग बंदिनी हवाएँ... टूट रहीं प्रतिमाएँ।’’

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Solution

कवि कहते हैं कि हमारी अभिव्यक्ति पर युगों-युगों से बंदिशें लगी हुई थीं। सदियों से हम निर्धारित सीमाओं में बँधे हुए थे। सदियों से देशवासियों की दबी कुचली-महत्त्वाकांक्षाएँ संतुष्ट होने के लिए आतुर हैं। स्वतंत्रता मिलने के पहले हम जिन सीमाओं में बंधे हुए थे, वे सीमाएँ अब हमारे लिए प्रश्नचिह्न बन गई हैं। लोग उन्हें तोड़ देना चाहते हैं। वे कहते हैं कि हमारे समाज में प्रचलित प्राचीन मान्यता अब टूट रही हैं।

Concept: पद्य (Poetry) (11th Standard)
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Chapter 3: पंद्रह अगस्त - काव्य सौंदर्य [Page 11]

APPEARS IN

Balbharati Hindi - Yuvakbharati 11th Standard HSC Maharashtra State Board
Chapter 3 पंद्रह अगस्त
काव्य सौंदर्य | Q 2 | Page 11
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