वृंद के दोहे

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निम्नलिखित पठित काव्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:

सरसुति के भंडार की, बड़ी अपूरब बात।
ज्यौं खरचै त्यौं-त्यौं बढ़ै, बिन खरचे घटि जात।।

नैना देत बताय सब, हिय को हेत-अहेत।
जैसे निरमल आरसी, भली बुरी कहि देत।।

अपनी पहुँच बिचारि कै, करतब करिए दौर।
तेते पाँव पसारिए, जेती लाँबी सौर।।

फेर न ह्‌वै हैं कपट सों, जो कीजै ब्यौपार।
जैसे हाँड़ी काठ की, चढ़ै न दूजी बार।।

ऊँचे बैठे ना लहैं, गुन बिन बड़पन कोइ।
बैठो देवल सिखर पर, वायस गरुड़ न होइ।।

उद्यम कबहुँ न छाँड़िए, पर आसा के मोद।
गागरि कैसे फोरिए, उनयो देखि पयोद।।

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:  (2)

  1. उपर्युक्त पद्यांश में आँखों कीं तुलना किससे की गई ?
  2. काम शुरू करने से पहले किस बारे में सोचना बहुत जरूरी होता है ?
  3. सरस्वती का भंडार अपूर्व क्यों है?
  4. दूसरे की आशा के भरोसे कया बंद नहीं करना चाहिए?

2. निम्नलिखित शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए:   (2)

  1. सौर - ______
  2. नैना - ______
  3. पाँव - ______
  4. काठ - ______

3. चादर देखकर पैर फैलाना बुद्धिमानी कहलाती हैं। इस विचार पर अपना मत 40 से 50 शब्दों में व्यक्त कीजिए:   (2)

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