पाप के चार हथियार

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निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए: 

‘‘वे मुझे बर्दाश्त नहीं कर सकते, यदि मुझपर हँसें नहीं। मेरी मानसिक और नैतिक महत्ता लोगों के लिए असहनीय है। उन्हें उबाने वाली खूबियों का पुंज लोगों के गले के नीचे कैसे उतरे? इसलिए मेरे नागरिक बंधु या तो कान पर उँगली रख लेते हैं या बेवकूफी से भरी हँसी के अंबार के नीचे ढँक देते हैं मेरी बात।’’ शॉ के इन शब्दों में अहंकार की पैनी धार है, यह कहकर हम इन शब्दों की उपेक्षा नहीं कर सकते क्योंकि इनमें संसार का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सत्य कह दिया गया है।

संसार में पाप है, जीवन में दोष, व्यवस्था में अन्याय है, व्यवहार में अत्याचार... और इस तरह समाज पीड़ित और पीड़क वर्गों में बँट गया है। सुधारक आते हैं, जीवन की इन विडंबनाओं पर घनघोर चोट करते हैं। विडंबनाएँ टूटती-बिखरती नजर आती हैं पर हम देखते हैं कि सुधारक चले जाते हैं और विडंबनाएँ अपना काम करती रहती हैं।

आखिर इसका रहस्य क्या है कि संसार में इतने महान पुरुष, सुधारक, तीर्थंकर, अवतार, संत और पैगंबर आ चुके पर यह संसार अभी तक वैसा-का-वैसा ही चल रहा है।

(१) आकृति पूर्ण कीजिए: (२)

  1. संसार में - 
  2. जीवन में - 
  3. व्यवस्था में - 
  4. व्यवहार में -

(२) निम्नलिखित शब्दों के लिए गद्यांश में आए हुए शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए: (२)

  1. ढेर -
  2. धारदार - 
  3. शोषक -
  4. उपहास -

(३) ‘समाजसेवा ही ईश्वरसेवा है’ इस विषय पर अपने विचार ४० से ५० शब्दों में लिखिए। (२)

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