कनुप्रिया

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निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए:

अपनी जमुना में
जहाँ घंटों अपने को निहारा करती थी मैं
वहाँ अब शस्त्रों से लदी हुई
अगणित नौकाओं की पंक्ति रोज-रोज कहाँ जाती है?

धारा में बह-बहकर आते हुए टूटे रथ
जर्जर पताकाएँ किसकी हैं?

हारी हुई सेनाएँ, जीती हुई सेनाएँ
नभ को कँपाते हुए युद्ध घोष, क्रंदन-स्वर,
भागे हुए सैनिकों से सुनी हुई
अकल्पनीय अमानुषिक घटनाएँ युद्ध की
क्या ये सब सार्थक हैं?
चारों दिशाओं से
उत्तर को उड़-उड़कर जाते हुए
गृद्धों को क्या तुम बुलाते हो

(जैसे बुलाते थे भटकी हुई गायों को)

जितनी समझ तुमसे अब तक पाई है कनु,
उतनी बटोरकर भी
कितना कुछ है जिसका
कोई भी अर्थ मुझे समझ नहीं आता हैं

अर्जुन की तरह कभी
मुझे भी समझा दो
सार्थकता है क्या बंधु?
मान लो कि मेरी तन्मयता के गहरे क्षण
रँगे हुए, अर्थहीन, आकर्षक शब्द थे-
तो सार्थक फिर क्या है कनु?
पर इस सार्थकता को तुम मुझे
कैसे समझाओगे कनु?

शब्द : अर्थहीन

शब्द, शब्द, शब्द, .............
मेरे लिए सब अर्थहीन हैं
यदि वे मेरे पास बैठकर
तुम्हारे काँपते अधरों से नहीं निकलते
शब्द, शब्द, शब्द, .............
कर्म, स्वधर्म, निर्णय, दायित्व........
मैंने भी गली-गली सुने हैं ये शब्द
अर्जुन ने इनमें चाहे कुछ भी पाया हो
मैं इन्हें सुनकर कुछ भी नहीं पाती प्रिय,
सिर्फ राह में ठिठककर
तुम्हारे उन अधरों की कल्पना करती हूँ
जिनसे तुमने ये शब्द पहली बार कहे होंगे

1. कृति पूर्ण कीजिए:   (2)

कनुप्रिया के अनुसार यही युद्ध का सत्य स्वरूप हैं:  

  1. ____________
  2. ____________
  3. ____________
  4. ____________

2. कृति पूर्ण कीजिए:  (2)

  1. कनुप्रिया कनु से इनकी तरह सब कुछ समझना चाहती है सार्थकता-
  2. कनुप्रिया की तन्मयता के गहरे क्षण -
  3. कनुप्रिया के लिए अर्थहीन शब्द जो गली -गली सुनाई देते हैं -
  4. कनुप्रिया के लिए वे सारे शब्द तब अर्थहीन है - 

3. निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 40 से 50 शब्दों में लिखिए: (2)

'युद्ध से विनाश एवं शांति से विकास होता है' - इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए:

नीचे की घाटी से
ऊपर के शिखरों पर
जिसको जाना था वह चला गया
हाय मुझी पर पग रख
मेरी बाँहों से
इतिहास तुम्हें ले गया!

सुनो कनु, सुनो
क्या मैं सिर्फ एक सेतु थी तुम्हारे लिए
लीलाभूमि और युद्धक्षेत्र के
अलंघ्य अंतराल में!

अब इन सूने शिखरों, मृत्यु घाटियों में बने
सोने के पतले गुँथे तारोंवाले पुल-सा
निर्जन
निरर्थक
काँपता-सा, यहाँ छूट गया-मेरा यह सेतु जिस्म
जिसको जाना था वह चला गया

(१) संजाल पूर्ण कीजिए: (२)

(२) पद्यांश में आए हुए निम्न शब्दों का चयन परिवर्तन कीजिए: (२)

  1. बाँह - ______
  2. सेतु - ______
  3. लीला - ______
  4. घाटी - ______

(३) ‘वृक्ष की उपयोगिता’ इस विषय पर अपने विचार ४० से ४५ शब्दों में लिखिए। (२)

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